दशहरे का मेला (बाल कविता)
दशहरा का मेला (बाल कविता)
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आज दशहरे के मेले से
धनुष-बाण मैं लाऊँ,
ज्यों हनुमान चलाते
वैसे मैं भी गदा चलाऊँ ।
रावण का पुतला मैं देखूँ
धू-धू कैसे जलता,
अहंकार कैसे बलशाली
राजा तक का ढलता
लंका है सोने की
लेकिन लगे न मुझको प्यारी,
जन्मभूमि को देखूँ मैं
तीनों लोकों से न्यारी ।
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451