दशहरा
सदा सत्य की जीत, दशहरा हमें बताता।
करें सत्य से प्रीत, झूठ से तोड़ें नाता।।
सच्चे पथ के राही को, बड़े मिलेंगे शूल।
रुके नहीं, चलते रहें, शूल बनेंगे फूल॥
काम, क्रोध व मोह-लोभ, रावण के हैं अंग।
राम नाम संवेदना, राम नाम सत्संग।।
छल, कपट, कटुता, कलह, चुगली, दगा व द्वेष।
राम नाम सत्संग से, मिटते सभी क्लेश।।
वर्तमान का रावण है, मन का भ्रष्टाचार।
आओ दशहरा पर करें, हम इसका संहार।।
मन का रावण मार दो, जले सत्य का दीप।
निर्मल मन हो निष्कलंक, जैसे मोती सीप।।
राम चिरंतन-चेतना, राम सनातन सत्य।
रावण वैर-विकार है, रावण है दुष्कृत्य।।
@स्वरचित व मौलिक रचना
कवयित्री शालिनी राय ‘डिम्पल’
आज़मगढ़, उत्तर प्रदेश।