दवंग बेटी
” बेटी तेरी नौकरी से तो मुझे हमेशा चिंता लगी रहती है ? समय खराब है ।”
रमा ने बेटी श्यामा से कहा । वह एक कम्पनी में काम करती है और रात- बिरात उसे आने में देर हो जाती है ।
श्यामा आये दिन महिलाओ के साथ होने वाली घटनाओं के बारे में जानती थी , लेकिन घर चलाने के लिए श्यामा को जोखिम उठानी ही है । घर में वृद्ध माँ और छोटा भाई है । पिता जी का देहान्त हो गया था । कुछ दिन पेंशन से घर चलता रहा लेकिन भाई की पढाई और माँ की बीमारी के कारण उसका नौकरी करना जरूरी हो गया ।
इसके बाद श्यामा ने पीछे मुड़ कर नहीँ देखा । उसने पढाई के दिनों में कराटे सीखा ।
कम्पनी में नौकरी लगने के बाद श्यामा ने पहले ही दिन मिर्च स्प्रे, एक छोटा चाकू , रस्सी , एक जेन्टस शर्ट और केप खरीदी ।
श्यामा जब रात को एक बजे आफिस से घर के लिए निकली तो उसने शर्ट पहनी , बालों को अंदर समेट कर केप पहनी और बैग से सुरक्षा उपकरण निकाल कर जेब में रखे फिर स्कूटी से चल पड़ी। घर करीब चार किलोमीटर की दूरी पर है ।
श्यामा ने अपने चेहरे पर डर और घबराहट नहीँ
आने दी ।
घर आ कर जब उसने कालबेल बजाई तो रमा एक क्षण के लिए दरवाजे पर अनजान आदमी को देख कर
डर गयी । तभी श्यामा ने केप उतारी और सब बातें माँ
को बताई । अब रमा को निश्चित॔ता हुई कि उनकी बेटी किसी भी परिस्थितियों से निपटने में सक्षम है ।
एक दिन रात को श्यामा के साथ हादसा हो भी गया , दो बदमाशों ने रास्ता रोक लिया तब श्यामा ने फुर्ती से पहले मिर्च स्प्रे उनकी आखों मे डाला , कराटे के स्टेपस से गिरा कर रस्सी से उनके हाथ पैर बांध कर पुलिस हेल्पलाइन को फोन करके उनके हवाले कर दिया । पुलिस को भी इन बदमाशों की तलाश थी ।
अब श्यामा ने कम्पनी की दूसरी लड़कियों को भी इन सब बातों को बताया और हर विपरीत परिस्थितियों से निपटने के लिए तैयार किया ।
रमा सोच रही थी : ” अगर आज हर लड़की अपनी सुरक्षा के लिए मानसिक तौर सचेत रहे और निपटने की तैयारी रखे तो कोई दरिन्दा बेटियों को नुकसान पहुंचाने की हिम्मत नहीँ कर सकेगा ।”
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल