दलितों जागो अपना उत्थान करो
दलितजनों जागो अपना उत्थान करो
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एकलव्य बन निज बाणों में,ब्रम्ह अस्त्र संधान करो।
दलितों जागो नैन खोलकर,अब अपना उत्थान करो।।
कब तक अत्याचार सहोगे, कब तक अश्रु बहाओगे।
निर्दोषी होकर कब तक ही,अपनी प्राण गँवाओगे।
क्या गलती थी उस बालक की,जिसको शिक्षक ने मारा।
ऐसे जितने आज अधर्मी,मानवता उनसे हारा।
निज हक पाने को आंदोलन,अब तो प्रखर महान करो।
दलितों जागो नैन खोलकर,अब अपना उत्थान करो।।
जाति धर्म का भेद भूलकर,हमको गले लगाते है।
जब चुनाव बेला आती तो,दलितों के घर खाते है।
एक तरफ चोला ओढ़े ये,मानवता का रक्षक बन।
उन दुष्टों को यही बचाते,जो शापित है भक्षक बन।
दुष्ट नपुंसक नेताओं का,नहीं कभी सम्मान करो।
दलितों जागो नैन खोलकर,अब अपना उत्थान करो।।
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~ डिजेन्द्र कुर्रे “कोहिनूर” ✍️✍️✍️