दलितों के, काशी काबा न होते,
विश्व में भारत के गौरव परम पूज्य बाबा साहब डा. भीमराव अम्बेडकर के जन्मदिन पर उन्हें समर्पित एक रचना।🙏
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दलितों के, काशी काबा न होते,
भारत में गर, भीम बाबा न होते।
कुदरत ने सबको बनाया था इंसा,
इंसा ने इंसा को, समझा न इंसा।
उसे दी घृणा और दुत्कार नफ़रत,
जिसे सब रहे, वर्षों वर्षों से ढोते।…… दलितों के काशी
कहाँ थी मयस्सर, पढ़ाई लिखाई,
औरों की सेवा में, थी भलाई।
तुम्हीं ने बताया, पढ़ो संगठित हो,
खड़े हैं हम यहाँ पर, उसी बल के बूते।…दलितों के काशी
पशु भी जहाँ का , पीते न पानी,
इंसान को वहाँ, जाना मना था।
तुम्हीं ने जगाई, कुछ ऐसी ज्योति।
जगी आत्मा, जो रही वर्षों सोती।
अधिकार छीना, उड़े सबके तोते। ….दलितों के काशी
हमें ही नहीं, सबको रास्ता दिखाया,
देश के लिए, संविधान बनाया।
चले देश सारा, उसी मार्ग पर अब,
लिखा तुमनें सारा, कहाँ क्या करें कब।
नहीं तो कहाँ , चैन की नींद सोते। ..दलितों के काशी
श्रृद्धा सुमन, आज करता हूँ अर्पण,
तुम्हारी डगर पर है, अपना तन मन।
देखा था तुमने, जो एक सपना,
मिले हर किसी को, हक उसका अपना।
इसी से बने हो, जहाँ के चहेते। ….दलितों के काशी
……✍️ प्रेमी
(भा.रि.बैंक जम्मू पदापन के दौरान 2008 में रचित)