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30 Jan 2022 · 3 min read

*दर-दर भटकते नेता ( हास्य व्यंग्य )*

दर-दर भटकते नेता ( हास्य व्यंग्य )
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एक तो सर्दी, ऊपर से कोरोना ! आचार संहिता अलग से लगी है । नेताओं के लिए चुनाव लड़ना बड़ा मुश्किल हो गया है। हालत यह है कि 15 – 20 लोगों को साथ में लेकर चुनाव प्रचार करने के लिए नेता निकलते हैं और नियमों का उल्लंघन मान लिया जाता है । अगर सौ – पचास लोगों को बिना माइक के भी संबोधित करेंगे तो नियम आड़े आ जाते हैं ।
पहले तो सिर्फ सोच-सोच कर बोलना पड़ता था । अब कितने लोगों के बीच बोलना है, इसके लिए भी सोचना पड़ रहा है। कारों के काफिले तो काफी पहले से ही बंद हो चुके हैं। समर्थकों को साथ लेकर कहां से घूमें, खुद ही घूमने पर सोच-विचार चलता है । जरा सी सावधानी हटी ,दुर्घटना घटी । तनिक सी भूल भी एफ आई आर दर्ज करा देगी। इतना बुरा समय नेताओं के चुनावी इतिहास में कभी नहीं आया। बेचारे खड़े तो विधायक के चुनाव में हैं और घर-घर ऐसे घूम रहे हैं मानो नगरपालिका की सदस्यता के लिए चुनाव लड़ रहे हों।
घर-घर आदमी कितना घूम लेगा ! सवाल चप्पल घिसने का नहीं है । सवाल पैरों में दर्द होने का है । 2 – 4 समर्थक जितना चाहे उतना घूम सकते हैं ,लेकिन सब लोग दूर तक और देर तक टहलने की आदत वाले हों, ऐसा जरूरी नहीं। प्रायः राजनीति में आने के बाद समर्थक और नेता दोनों ही अपना वजन बढ़ा लेते हैं । वजन बढ़ाना अर्थात शरीर का मोटा हो जाना।
पुराने जमाने याद आते हैं ,जब नेता जुलूस निकालते थे । खुद खुली कार में खड़े होकर केवल हाथ हिलाने का काम करते थे। बाकी माला पहनाने तथा पुष्प-वर्षा का सारा काम उनके समर्थकों और शुभचिंतकों के जिम्में रहता था । मजाल है कि नेताजी को कार से उतर कर चार कदम भी चलना पड़े !
अब विधायक-सांसद की तो बात ही अलग है, बड़े-बड़े मंत्री घर-घर जाकर मतदाताओं को दोनों हाथों से नमस्ते करते हैं, स्पेशल मुस्कुराते हैं और चलते ही रहते हैं। कितना भी चल लो ,न पूरा प्रदेश घूम सकते हो ,न पूरी विधानसभा के हर घर में जा सकते हो । जुलूस और जलसे बंद होने के कारण हर मतदाता पर व्यक्तिगत रूप से ध्यान देना पड़ रहा है ।
मतदाता इस बार घर के अंदर बैठा हुआ है और उम्मीदवार का इंतजार कर रहा है । कुंडी खटखटाने की जिम्मेदारी उम्मीदवार की है । घर पर आकर वोट मांगने की जिम्मेदारी भी उम्मीदवार की ही है। मतदाता इस बार बादशाह बना हुआ है। अब उसे कौन समझाए कि उम्मीदवार हर घर पर जाकर वोट नहीं मांग सकता। लाखों की संख्या में मतदाता हैं । चारों तरफ गली, मोहल्ले ,कालोनियां और मकान बिखरे पड़े हैं । तुम्हारा उम्मीदवार बेचारा कहां-कहां जाए ?
कोरोना खत्म होने का नाम नहीं ले रहा । पुलिस पीछे पड़ी है । नामांकन पत्र भरने में ही पसीने छूट रहे हैं । कितने मुकदमे दर्ज हैं ? -इसकी गिनती करने के लिए प्रत्याशीगण अपने वकील की मदद ले रहे हैं । कितनी संपत्ति है ,कितनी बताई जाए?- इसके बारे में अलग से मंथन होता है। चुनाव खर्च किस प्रकार से दिखाया जाए ,इस के पापड़ तो हमेशा से बेले जाते हैं। लेकिन यह जो नई आफत आई है कि जनसभा नहीं कर सकते और जुलूस भी नहीं निकाल सकते, इस ने उम्मीदवारों को सचमुच पैदल कर दिया । बेचारे गाड़ी में घूमने वाले आज दर-दर एक वोट के लिए भटक रहे हैं। सचमुच दया आती है !
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लेखक : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451

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