दर्स ए वफ़ा आपसे निभाते चले गए,
दर्स ए वफ़ा आपसे निभाते चले गए,
आप है की मुझको आज़माते चले गए..
हमने तेरे इश्क़ में क्या कुछ नहीं किया,
दामन आप है की मुझसे छुड़ाते चले गए..
पर्दा रखा हमने तेरे हर ऐब पर,
आप मेरे हर ऐब को गिनाते चले गए..
सजाया जिनकी राह को कलियों से अब तलक,
वो ख़ार मेरी राह में बिछाते चले गए..
दरकार थी मेरे हाल की ढाल वो बने,
तब तीर बेरूख़ी के चलाते चले गए..
कैसे न करता कोई ऐतबार उनपर फिर,
हर चेहरा एक नकाब में छुपाते चले गए..
कैसे न हो बे-रंग अब शेर मेरा यहाँ,
वो रंग अपने रूप का दिखाते चले गए..
रोशन थी जिसके नाम की इमारत कभी यहा,
वो शमा इस दहलीज़ की बुझाते चले गए..
(ज़ैद_बलियावी)