दर्शन
आज बहुत खुशी का दिन है क्योंकि शारदीय नवरात्र का आज नवमी है। सारे लोग नहा धोवाकर के मां के दर्शन करने के लिए पटजिरवा माई स्थान जा रहे हैं। ये लोग पटजिरवा माई स्थान जाकर के मां के चरणों में पूजा-अर्चना करेंगे और हवन भी करेंगे।
वैसे में तो पटजिरवा वाली माई का इतिहास रामायण काल से जुड़ा हुआ है। वर्षों से चली आ रही परंपरा है कि जब बेटी का विवाह होता है और उसको विदा किया जाता है तो बिदागिरी के समय उस दुल्हन का डोली गांव के सिवान पर रुकता है और वहां पर उस दुल्हन की दो-चार सखियां जाती है, उन्हें कुछ खिलाती है और पानी पिलाती है। उसके बाद वहां से उस दुल्हन का डोली उठता है तो उनके ससुराल जाता है और वहां से सखियां अपने घर आती है। वो सिवान पर का मिलन उस समय का अंतिम मिलन होता है। इसी प्रकार जब जनकपुर के राजा जनक की पुत्री सीता का विवाह अयोध्या के राजा दशरथ के पुत्र श्री रामचंद्र से हुआ। उसके बाद जब सीता विदा हुई तो उनसे मिलने के लिए दो-चार सखियां जनकपुर राज्य के अंतिम सीमा यानी सिवान पर मिलने के लिए आई और वहीं पर सीता का डोली रुका जहां पर दो-चार सखियां उन्हें कुछ खिला करके पानी पिलाई और वहां से सीता का डोली उनके ससुराल अयोध्या की ओर चल दीया और सखियां अपने घर को चली आई। तो जहां पर माता सीता का डोली रुका था और उनका पट खुला था। उसी के कारण उस स्थान का नाम पटजिरवा पड़ा और आज वह सिद्ध पीठ पटजिरवा माई धाम के नाम से प्रसिद्ध है जहां पर यूपी, बिहार से लेकर के अपने पड़ोसी देश नेपाल से भी लोग आते हैं मां के दर्शन करने के लिए। क्योंकि उस समय यह नगरी मिथिलांचल नगरी के अंतर्गत आता था और इसके बाद पश्चिमी इलाका जो था वह अयोध्या नगरी के अंतर्गत आता था।
खैर मुझे अधिक इतिहास के अंदर जाने की जरूरत नहीं है। मुझे तो मां का दर्शन करने जाना है। ए बातें सोच कर मेरे अंदर भी खुशी हुई और लालसा जगी कि मैं भी आज मां के दर्शन करने के लिए जाऊंगा और मां के चरणों में पूजा- अर्चना करूंगा, नारियल तोडूंगा, हवन भी करूंगा और मां से प्रसाद स्वरूप आशीर्वाद लेकर आऊंगा। क्योंकि पूजा स्थल पर जाकर के मुझे मां का दर्शन किए हुए लगभग चार-पांच वर्ष हो चुके थे। इसी वजह से मेरे अंदर इतना ज्यादा खुशी थी कि आज मैं मां का दर्शन करने लिए जा रहा हूं। इस खुशी में मैंने नहा धोवाकर के तैयार हो गया। मोटरसाइकिल निकाली और मोटरसाइकिल पर बैठ कर के माई पटजिरवा स्थान की ओर चल दिया।
चलते-चलते जब माई पटजिरवा स्थान से एक किलोमीटर की दूरी पर था तब देखा कि सड़क के किनारे कुछ लोगों की भीड़ लगी हुई है। उस भीड़ के पास पहुंचने से पहले ही लोगों ने मुझे हाथ देकर के रोकना शुरू कर दिए और जब मैंने उस भीड़ के पास रुका तो देखा कि एक मोटरसाइकिल वाले व्यक्ति को ठोकर लगी हुई है। दरअसल वे लोग पूजा-अर्चना करके वापस घर की ओर जा रहे थे और उस मोटरसाइकिल पर एक लड़का जो गाड़ी चालक था और उस पर दो लड़कियां बैठी हुई थी। किसी वाहन से इन लोगों को ठोकर लगी थी जिसके कारण वे लोग गिर चुके थे और गिरने के कारण गहरी चोट आई थी। मोटरसाइकिल चालक को तो शायद कम चोट थी जिसके कारण वह चल फिर रहा था बल्कि जो दो लड़कियां थी इन लोगों को गहरी चोट लगी थी जिसके कारण उनके शरीर से खून गिर रहा था। लोगों ने कहा कि इन्हें बैठा करके थोड़ा आप बगल के डॉक्टर के पास ले जाकर के पहुंचा दीजिए। मैंने गाड़ी रोकी और उसमें से एक लड़की मेरे गाड़ी पर बैठी जिसे गहरी चोट लगी हुई थी और उनके शरीर से ज्यादा खून गिर रहा था। जो चालक था वह उस लड़की को लेकर के मेरे गाड़ी पर बैठा और ले करके मैं माई पटजीरवा स्थान के बगल में एक डॉक्टर की दुकान थी वहां पर पहुंचा दिया।
जहां पर डॉक्टर की दुकान थी वहां से महज सौ कदम की दूरी पर मां का स्थान था। लेकिन जब मैंने उन लोगों को डॉक्टर के क्लीनिक पर उतार दिया और उसके बाद गाड़ी पर लगी हुई मिट्टी को झाड़ रहे थे तभी देखा कि मेरे पूरा शाॅर्ट खून से लथपथ हो गया है। अब मैं मां के पूजा स्थल के प्रांगण में तो पहुंच गया था पर चाह कर भी मां का दर्शन नहीं कर पाया। क्योंकि मेरी शॉर्ट जो थी वह खून से लथपथ हो चुकी थी और मैं खून से लथपथ शॉर्ट को पहन करके मां की पूजा-अर्चना करने के लिए उनके पास नहीं जा सकता था। शायद मां का दर्शन करने का सौभाग्य मुझे इसी रूप में लिखा हुआ था। बस हुआ क्या? मैं वही से वापस घर की ओर लौट आया।
लेखक – जय लगन कुमार हैप्पी ⛳