दर्पण
दर्पण
(1)
रिश्तेदारों के लिए अर्पण होगा,
प्रेम भाव से समर्पण होगा।
दिल से दिल मिल जाए,
यही असली दर्पण होगा।
(2)
अपनी चेहरा खूद नहीं देखता,
औरो का मैं देखता हूं।
अपनी चेहरा दिखे तो भाई,
यही असली दर्पण होगा।
(3)
दर्पण देख मुस्कुराता ,
बालों को संवारता ।
बाहर छोड़ अंदर को सवार,
यही असली दर्पण होगा।
********************
कवि डीजेन्द्र कुर्रे “कोहिनूर”
पिपरभावना , बलौदाबाजार(छ ग)
मो.8120587822