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31 Oct 2019 · 1 min read

दर्पण सब जानता है

यह जो दर्पण है ये सब जानता है
असली नकली को पहचानता है
हद बेहद जो निखरता संवरता है
दर्पण पूर्णता असलियत जानता है

अपनों के चेहरे धूँधले हो जाते हैं
जब अपने बहुत दूर चले जाते हैं
ना हो जब उम्मीद पुनर्मिलन की
दर्पण में हाल ए दिल पहचानता है

जाना होता है जब किसी के साथ
होती है मिलन की आस उन साथ
देखती जब प्रेयसी बार बार दर्पण
दर्पण ही प्रथम सौंदर्य निहारता है

छूट जाता है जब प्रियतम का साथ
हाथों में लिया हुआ वह नर्म हाथ
छटपटा के जाए बिखर मुकुर पास
दर्पण नमी आँखों की पहचानता है

टूट कर .बिखर जाते हैं हसीं सपने
छोड़ साथ, किसी ओर संग अपने
दर्द ए दिल जब हद से बढ जाता है
दर्पण दर्द जख्म दिल का जानता है

सुखविंद्र सिंह मनसीरत

Language: Hindi
246 Views
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