दर्पण को देख देखकर राधे
दर्पण को देख देखकर राधे मत किया कर श्रृंगार
तेरी सुंदरता देख मैं भूल बैठा अपने तीज त्यौहार
रोज अरमानों की महफ़िल में छलकता ये पैमाना
मेरी प्यासी निगाहों को राधे जामें-वफा तू पिलाना
आ करलें दिल से दिल का सौदा अच्छा है व्यपार
दर्पण को देख देखकर राधे मत किया कर श्रृंगार
तेरी सुंदरता देख मैं भूल बैठा अपने तीज त्यौहार
तू दिल में धड़कन बनकर रहती खुले मेरे नसीब
जब जब तेरी जुल्फें सवारूँ हुआ दिल के करीब
धनक बन के आसमाँ पे खिली दिल से मोहब्बत
मेरा दिल ही बन बैठा जाने क्यों अब मेरा रकीब
पलकें बंद करता हूँ तो नजर आती तू ही हर बार
दर्पण को देख देखकर राधे मत किया कर श्रृंगार
तेरी सुंदरता देख मैं भूल बैठा अपने तीज त्यौहार
मेरे दिल से होके ही गुजर रही है तेरी हर एक राह
आरमनों के सितारें देख देख भरते है तुझको आह
चल दुनियॉ को भव सागर से पार उतारें हम दोनों
भटकती जिंदगी को अब बस राधे राधे की है चाह
मुल्केइश्क का दर्ज़ा हम देकर दे हिन्द को उपहार
दर्पण को देख देखकर राधे मत किया कर श्रृंगार
तेरी सुंदरता देख मैं भूल बैठा अपने तीज त्यौहार
अशोक सपड़ा की कलम से दिल्ली से
जय श्री कृष्ण जय श्री राधे