दर्द
दर्द को अपना गुरु बना लो, फिर देखो संघर्ष चुनौती।
हरपल सच के दर्शन होंगे, उतर जायेगी स्वर्ण मुखौटी।।
दर्द गुरु अब हृदय विराजे, तुम सब पर अब राज करो।
विजय तुम्हारी है पगपग पर ,मन चाहे सो काज करो।।
इस गुरु के है रूप अनेकों, भूख-प्यास आदर-सम्मान।
भाव, कुभाव, अभाव, स्वभाव निरादर और अपमान।।
कुछ मिलता है दुख होता, कुछ न मिलता दुख होता है।
इस मिलने न मिलने के फेर में, इंसान स्वयं को खोता है।।
यह जीवन की उलझन है, यह सर्वजगत की पीड़ा है।
दर्द नाम गुरु जिसमे बैठा, वह मानव रूपी कीड़ा है।।
उसी दर्द को गुरु बनाया, उस गुरु ने ही सीख सिखाई।
मानव होकर क्या ही हुआ, हरी न हो जब पीर पराई।।
जय हिंद