दर्द
दर्द का पैमाना आखिर होता है कितना ?,
कोई जितना बर्दाश्त कर सकता है इतना ।
लबों पर आह बनकर निकलने लगे जो ,
और धड़कनों का शोर बढ़ने लगे इतना ।
आह कराह भी बन जायेगी दर्द के साथ ,
तड़प और बेचैनी से छटपटाएगा इतना ।
दर्द किसी लिहाज से अच्छा नहीं होता ,
जो हद से जायदा परेशान कर दे इतना ।
बात चाहे हड्डीटूटने की या दिल टूटने की ,
प्यार का मरहम मिले है इलाज बस इतना ।
मसीहा भी दुश्मन दिखाई देने लगेगा तब ,
जज़्बात को समझे बिना दर्द देने लगे इतना ।
है “अनु” को बस अपने खुदा पर ऐतबार ,
जिंदगी को दर्द से राहत दिलवा दे इतना ।