दर्द
बहुत सी ख्वाहिशें थी इस छोटी सी जिन्दगी में,
कुछ हुई पूरी तो कुछ रही अाई अधूरी सी।।
दिल यह नादान है मेरा, बिना पंखो के ना जाने कहां कहां उड़ा,
और बैठा भी जाकर उस शाक की टहनी पर,
जिस पर हक ना हमारा था।।
लगी ऐसी चोट फिर हमें की,
ना दर्द सम्हला और ना ही सम्हले हम।