दर्द
होते हैं
आंसू बड़े
बेदर्द
सह सकते
नहीं दर्द
करते नहीं
दर्द किसी से
बेबफाई
करते हैं बफाई
बेरहमी से
जब भी
होती है बात
दर्दे-ए-दिल की
याद आयेगे
बदनसीब
हीरा-रांझा हरदम
छिपा
दिल का दर्द
देता है आहें
दर्दभरी
समझो
पीड़ा दर्द पराई
थामेगा मौला
हाथ
फकीर
तोलो मत
रिश्तों को
पैसे से
होते
दर्द के
रिश्ते
फरिश्ते
सहा है
इतना दर्द
“संतोष”
अब तो दर्द
हो गये बेदर्द
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल