दर्द
उपहारों की भीड़ में अब
गोपियों जैसी प्यास कहां
वो प्यार की राग-तपस्या
विरह-मिलन के संत कहां।।
पूछ रहा उद्धव माधव से
कहां पुकारूं तुमको श्याम
जिस प्रेम की खातिर तुमने
मुझे भेजा था गोपी-धाम।।
उपहारों की भीड़ में अब
गोपियों जैसी प्यास कहां
वो प्यार की राग-तपस्या
विरह-मिलन के संत कहां।।
पूछ रहा उद्धव माधव से
कहां पुकारूं तुमको श्याम
जिस प्रेम की खातिर तुमने
मुझे भेजा था गोपी-धाम।।