दर्द है फिर भी मुस्कुराये हैं
रंजोग़म के बहुत सताये हैं
दर्द है फिर भी मुस्कुराये हैं
सिर्फ़ आँसू इन्हें नहीं समझो
ख़्वाब आंखों में झिलमिलाये हैं
उम्र सारी गुज़ार दी चलते
क्यूँ क़दम आज लड़खड़ाये हैं
सिर्फ़ इतना पता के कुछ बोले
क्या ख़बर क्या वो बड़बड़ाये हैं
फिर भी हमको तो ग़ैर ही समझा
जबकि रिश्ते सभी निभाये हैं
कौन दुश्मन है दोस्त है अपना
वक़्त पर हमने आज़माये हैं
अपनी किस्मत का कौन सा तारा
आसमाँ पर नज़र गड़ाये हैं
करना रौशन है तेरी राहों को
दिल के दीपक तभी जलाये हैं
आप ‘आनन्द’ के भले बनते
इतने इल्ज़ाम क्यूँ लगाये हैं
– डॉ आनन्द किशोर