दर्द से रिश्ता बनाने में जुटा था ..
दर्द से रिश्ता बनाने में जुटा था ..
आखिरी यही मार्ग बचा था ।
वर्षो उलझा , मचला ,,
हर साँस में तुम्ही को लेकर पर तुम्हे पहचान नहीं पाया जान नहीं पाया ।
छोड़ सपने जान लेता ,और फिर यह मान लेता
तन्हाई सबके लिए नहीं है , बहुत कलेजा चाहिए
पर ख़ामोशी तुम्हारी इस तरह दुश्मन बनी है ,
मैं किंकर्तव्यविमूढ़,तुम्हे समझ न सका
आज भी कुछ भी न कहना , खामोश रहना
हर बात का जवाब ,इशारों में आखिर हुआ क्या है
खामोशी का सन्नाटा ,जैसे फैला हो मातम,
चुलबुलाहट,बात बात पर खिलखिलकर हंसना ,
सब अदृश्य
क्या मंजर है ,में इसको अपनी नियति नहीं मान सकता
कोई तो बात होगी ,
एक बार फूट फूट कर रो ही दो , चिल्ला लो कितनी भी जोर से ,जैसे भी मन हल्का हो , पहले तो ऐसी नहीं थीं ,
व्यर्थ क्यों पीड़ा बढा रही हो ,,कंटको को उर से क्यों लगा रही हो ।
जान कर पहचान कर फिर मौन रहना रीत कैसी .
दर्द को चिर उर बसाए हाय निष्ठुर प्रीत कैसी ,,,,,,,,