दर्द लफ़्ज़ों में
दर्द लफ़्ज़ों में गढ़ नहीं पाया ।
जिस्म-रूह को समझ नहीं पाया।।
बे’यकीनी थी उसकी आँखों में ।
जो मुझे पढ़ के पढ़ नहीं पाया ।।
डाॅ फौज़िया नसीम शाद
दर्द लफ़्ज़ों में गढ़ नहीं पाया ।
जिस्म-रूह को समझ नहीं पाया।।
बे’यकीनी थी उसकी आँखों में ।
जो मुझे पढ़ के पढ़ नहीं पाया ।।
डाॅ फौज़िया नसीम शाद