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8 Oct 2021 · 1 min read

दर्द रिश्तों का

हर रिश्ते में बंधी भी
पर कोई भी रिश्ता
मेरा न था
रिश्तों में फासले तो थे पर
वे इतने खौफनाक हो सकते है
कभी सोचा न था
हम सफ़र बनाया था जिसे
हमसफ़र तो था पर साथी न बन सका
रहते थे इक मकान में पत्थर की तरह
क्योंकि वो मकान था घर न बन सका
घर न होने का दर्द ऎसा भी होता है
कभी सोचा न था
गीली रेत पर लिखा था अपना नाम
उसके नाम के साथ
हवा का इक झोंका आया
रेत के साथ नाम भी उड़ा लेे गया
नाम का वजूद मिटने का दर्द ऎसा भी होता है
कभी सोचा न था
मुठ्ठी में बंद रेत की तरह कब फिसल गया वो
मालूम न था
रीति मुठ्ठी लिए खड़े रहने का दर्द
कभी सोचा न था।
होता है जो रिश्ता दिल के करीब
वही दे जाता है इतना दर्द
कहते हैं दिए जलाकर रोशनी करो
पर दिये के नीचे के अंधेरे का दर्द कितना है
दिए ने ये कभी सोचा न था ।।

✍️रश्मि गुप्ता@ Ray’s Gupta

Language: Hindi
2 Likes · 2 Comments · 449 Views
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