दर्द भरे गीत
ये दर्द ना होता
ये शाम ना होती
काश कोई जिस्मोजान ना होती
पिंजरे में कैदी पंछी को आराम ना होती।
ये दर्द ना होता
ये शाम ना होती
लफ्जों में बयां ना कर पाऊं
दर्द अब रिसता है दिल रोता है।
ये दर्द ना होता
ये शाम ना होती
किसको दिखा है, बिना आँसू का रोना
वो बिखरना दिल का हर कोना सुना
अप्रीतम (बेजोड़पन) का खोना
वो जल जल कर अब जीना
ये दर्द ना होता
ये शाम ना होती
रूह निकल जाती है तन जल जाती है।
जीवन संग बिछड़ जाना है।
एक दिन खो जाना है।
ये दर्द ना होता
ये शाम ना होती_डॉ . सीमा कुमारी,
बिहार,भागलपुर,दिनांक-20-3-022की मौलिक एवं स्वरचित रचना जिसे आज प्रकाशित कर रही हूं