दर्द पिता की मौत का
उन क्षणों का दर्द
कोई नहीं समझ सकता इस संसार में
जब तक वो क्षण जिंदगी में ना आएं
घर में छोटा था मैं
पर
अचानक से बड़ा बन गया मैं
मुझे हालातों ने बड़ा बना दिया था
हस्पताल के उस पलंग पर
मेरी आँखों के सामने
वो पिता जी की लाश नहीं थी
वो तो जिम्मेदारियों की गठड़ी थी
ना जाने कहाँ से मेरे अंदर इतनी ताकत आई
एक पल में उस गठड़ी को सिर पर उठा लिया
बहनों को फोन किया
परिवारों वालों को सूचना दी
फिर साथ में आई भाईयों को संभाला
ना जाने कौन मेरे अंदर घुस गया था
ना जाने वो कौनसी ताकत थी
एम्बुलेंस करके पिता जी की लाश को घर लाया
माँ सुबक रही थी उसको चुप करवाया
भाई को दिलासा दिया
बहनों को समझाया
मैं खुद तो पत्थर सा हो गया था
मेरे आँसू सुख गए अचानक से ही
जब चले अर्थी को लेकर श्मशान में
तो दिल फट ही गया
मेरे आँसुओं के साथ इंद्रदेव भी बरसने लगे
जैसे ही दी मुखाग्नि मैंने
ना जाने वो ताकत कहाँ चली गयी
पैरों की जान निकल गयी
और मैं वहीं बैठ गया
चिता को देखता रहा टकटकी लगाए
परिवार वालों ने संभाला मुझे
कँधे से लगाकर समझाया
वो ही बातें कही जो मैं भी कहा करता था औरों को
पर उस दर्द को आज महसूस किया
आज अहसास हुआ मुझे दर्द का
आज मैं ही जानता था मैंने क्या खोया
अब छोटे कँधे मेरे जिम्मेदारियों के बोझ को उठाये थे
पूरे घर की जिम्मेदारी मुझ पर ही तो थी अब
तीसरे दिन सुबह फिर श्मशान में गया
पण्डित जी भी साथ में थे
लेकर पिता जी की अस्थियों को
चला परिवार वालों के साथ
उनकी मुक्ति की कामना मन में लिए
गढ़मुक्तेश्वर धाम की ओर
वहाँ जाकर सारी क्रिया, रस्में पूरी की
फिर गंगा मैया के बीच में अस्थियों को विसर्जित कर दिया
बस यहीं तक का साथ पिता जी का
अब तो यादों में ही रह गए पिता जी
उनकी मृत्यु का शौक मनाने आने वाले
देकर जा रहे थे मुझे झूठी तसल्लियाँ
पर सच बात तो मुझे “सुलक्षणा” कह गयी
बोली सिर पर हाथ रखकर मुझसे
बेटा तुम्हें खुद को संभालते हुए घर संभालना है
हम सांत्वना ही दे सकते हैं और कुछ नहीं
मदद एक बार करेंगे तो सौ बार अहसान जताएंगे
अब भगवान का ध्यान धरते हुए आगे बढ़ो
परमात्मा तुम्हें कामयाबी दे खुशहाली दे
उन्होंने कहा तुम्हारे पिता जी कहीं नहीं गए
वो साथ हैं तुम्हारे उनकी यादों के रूप में
और उनके द्वारा दिये व्यवहारिक ज्ञान के रूप में
जब भी कोई कार्य करोगे तुम
वो तुम्हारे अंदर से तुम्हें जरूर बताएंगे
कि तुम सही कर रहे हो या गलत
बस इसी बात से मुझे नई दिशा मिली
पिता जी के आदर्शों के साथ जीने की
©® डॉ सुलक्षणा