दर्द न समझ कोई,
आज मुझे वो सक्श मिला हैं जिसने अपना हाल बताया हैं
दर्द उसके अंदर कितना हैं ऐ उसने रो रो कर बतलाया हैं,
मयूँसी चेहरे पर छलक रही थी वो जाने कितने जख्म छुपाया हैं,
हाल उसका बुरा हो गया दर्द छुपाने में फिर भी न जाने वो कैसे मुशकुराया हैं,
इल्जाम उसे दे दिया लापरवाही में होने का फिर भी उसने उसकी परवाही में सब कुछ लुटाया हैं,
उसने न समझा उसको बस उसने ही ठुकराया हैं,
कैसे काटे वो दिन रात रोते रोते वो पगलाया हैं,
दर्द उसके शीने में हैं इसे न कोई समझ पाया हैं,
वो चुप रह कर भी अंदर रो रहा हैं उसने उसे रूलाया हैं,
कब समझे वो उसको इसी आस में वो ललचाया हैं,
लेकिन उसकी खुद गरजी का उसने क्या खूब लाभ उठाया हैं,
रोता रहा वो अकेला न उसको ये उसने समझाया हैं,
वो माने उसकी बाते बस मैंने यही समझाया हैं,
आज मुझे वो सक्श मिला हैं जिसने अपना हाल बताया हैं,
दर्द उसके अंदर कितना हैं ऐ उसने रो रो कर बतलाया हैं,
रुला दे दिल उसकी सुनकर मुझे तरस आया है।
उसके दर्दे दिल का एहसास मैंने अपने दिल में पाया है।
लेखक— जयविंद सिहँ नगारिया जी