दर्द देह व्यापार का
कौन बयान कर सकता है,
दर्द, देह के व्यपार का।
सजती है महफ़िल,
जमती है रौनक,
आते है लोग,
दौलत बहुत होती है पास
होता है रुतबा खास
खरीदी चीज जिस्म
उस पर मलकाना
अंदाज
जो दिल करे, वो करे
क्यू परवाह उस की करे
जिस को दिए हो
नोट हजार
कौन सुने,क्यू कर सुने
औरत जिस्म चीज
ही तो है
देह-व्यपार
रोती, सिसकती,आह
क्यू कर कान में जाये
हवस-वासना
जब चढ़ जाये
संध्या चतुर्वेदी
मथुरा, उप