दर्द था जख्म का पता भी नहीं
दर्द था जख्म का पता भी नहीं
अपनों के जख्म का निशाँ ही नहीं
करहातेे रहे रात भर दर्द में
मरहम किसी ने दिया ही नही
हम तो अपनों में ही अनजान हुए
हाल जब अपनों ने पूछा ही नहीं
किसे सुनाते किस्से अपने दर्द के
दुनिया में कोई अपना दिखा ही नहीं
मशगूल थे सब अपनी दुनिया में
जख्म मेरा इतना बड़ा था ही नही
प्यास लगी थी मुझे आब की
रेत के अलावा कुछ दिखा ही नही
समुन्द्र था सबको साथ लेता चला गया
मेरी जरूरत किसी को थी ही नहीं
मायाजाल में फंसा था मैं भी दुनिया के
आँखे खुली तो साँसे बची ही नही
भूपेंद्र रावत
21/05/2018