दर्द जो आंखों से दिखने लगा है
दर्द जो आंखों में दिखने लगा है , वो कैसे छुपाएं।
आंसू पलक पर जमने लगा है ,वो कैसे छुपाएं ।
बात होंठों पर जो आकर ठहरी,वो कैसे बताएं।
उलझन जो आ जीवन में ठहरी,कैसे सुलझाएं।
ख़त जो हमने लिखा है तुमको,कैसे पहुंचाएं
रुठी है तुम बिन जो खुशियां, उन्हें कैसे मनाएं।
सवाल इतने हो गये जिंदगी में, जवाब कैसे पाएं
सजदा खुदा को ही तू कर ,तो बात बन जाए।
सुरिंदर कौर