दर्द के भँवर से
दर्द के भँवर से खुदको गुज़रते नहीं देख़ा
क्या समझे वो दर्द कभी पलते नहीं देखा
चोट खाई इश्क़ में जो बन गया नासूर
इस दर्द को सीने से निकलते नहीं देख़ा
हर ताल पर थिरकती थी जो बेसबब यार
कुम्हला गई है वो कली थिरकते नहीं देखा
देखो कैसा हुआ असर है नोटबंदी का
हमने नेताओं को ऐसे बिफरते नहीं देखा
रोटी कपड़ा और मकान भरे पड़े अनाज
लगी जो तलब दौलत की मिटते नहीं देखा
भाग रहे हो क्यों ऐसे दिखावे में यारों
जिस दौर में कँवल ने घर बसते नहीं देखा