दर्द की हद
दर्द की हर एक हद से गुजर गया हूं मैं,
फिर कभी न सताऊगा,
यूं बिखर गया हूं मैं ।
मौत बस आती नहीं रूह के निकलने से,
सांस मुझमें बाकी है,
फिर भी मर गया हूं मैं ।
**** डां. अखिलेश बघेल ****
दतिया ( म. प्र. )
दर्द की हर एक हद से गुजर गया हूं मैं,
फिर कभी न सताऊगा,
यूं बिखर गया हूं मैं ।
मौत बस आती नहीं रूह के निकलने से,
सांस मुझमें बाकी है,
फिर भी मर गया हूं मैं ।
**** डां. अखिलेश बघेल ****
दतिया ( म. प्र. )