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1 Feb 2018 · 3 min read

दर्द की परछाइयाँ-पुस्तक समीक्षा

कवयित्री – शकुन्तला अग्रवाल ‘शकुन’
प्रकाशक – कॉ-ऑपरेशन पब्लिकेशन्स
मूल्य – 175/-

हिन्दी साहित्य जगत में प्रसिद्ध साहित्यकारों एवं प्रख्यात कवियों ने काव्य की परिभाषा को भले ही अलग-अलग शब्दों या विचारों से अलंकृत किया है, परन्तु अर्थ सभी का एक ही मिलता है कि आनन्द का सही मार्ग किसी में दिखाई पड़ता है तो वह काव्य-रचना ही है। तभी तो आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने कविता को ‘जीवन की अनुभूति’ कहा है और छायावाद की प्रसिद्ध कवयित्री महादेवी वर्मा ने कविता के स्वरूप को स्पष्ट करते हुए लिखा है—‘‘कविता कवि की भावनाओं का चित्रण है।’’
समाज में हो चुकी या वर्तमान में हो रही उथल-पुथल, मन में उठ रहे झंझावात, प्राकृतिक त्रासदी या सामाजिक मुद्दों को कवि मन इस प्रकार से समाज के समक्ष प्रस्तुत करता है जैसे किसी मंच पर कोई विषय विशेष को प्रदर्शित किया जा रहा हो।
प्रस्तुत काव्य-संग्रह ‘दर्द की परछाइयाँ’ वरिष्ठ कवयित्री शकुन्तला अग्रवाल ‘शकुन’ का प्रथम प्रस्फुटन है, जिसमें कवयित्री ने भाव पक्ष व कला पक्ष दोनों को ही समेटने का प्रयास किया है। ‘पथ प्रदर्शक’ से लेकर ‘महानगर’ तक कविताओं में कहीं उम्मीद है तो कहीं प्रश्न।
कवयित्री ने प्रथम कविता ‘तेरा तुझको अर्पण’ की तर्ज पर ‘पथ प्रदर्शक’ की रचना की है, श्रीमती अग्रवाल ने भगवन आराधना के बाद कहीं यादों को संजोया है तो कहीं नारी की व्यथा को सटीक शब्दों में दर्शाया है। इसके साथ-साथ जीवन के सुख-दु:ख को परदे में रखने का बेइंतहा प्रयास भी किया है अगर इसी आधार पर हम इनकी कविता ‘किताब’ की गहराई में उतरें तो इनके जज़्बातों को शायद समझ सकें, आप बानगी देखिए-
‘बन्द किताब है मेरी जिन्दगी
बन्द ही रहने दो
क्यों कुरेदते हो तुम जज़्बातों को
याद दिलाते हो मुझे बीती बातों कों।’

इनकी एक कविता ‘नित नित सच बिकता है’ में ऐसी सच्चाई छुपी है कि आप स्वयं ही निर्णय करेंगे कि श्रीमती अग्रवाल समाज में नवक्रांति लाने मेें कितनी व्याकुल हैं—
‘कहीं महफिल सजती
कहीं तन्हाई डसती
खेल है सब ये किस्मत के
समझ लो तुम जग वालो
कोई फलता है यहाँ
कोई जलता है यहाँ
मेहरबां है जिस पे लक्ष्मी
आज उसी का है जहाँ’
इनके द्वारा रचित प्रत्येक कविता में कोई न कोई संदेश छुपा है और हरेक शब्द दिल की गहराई में उतरता है। कुल 75 कविताओं का यह मनोरम गुलदस्ता जब आप हाथों में लेंगे और इनकी कविताओं को अपने अन्तर्मन में उतारेंगे तो स्वयं जानेंगे कि कवयित्री के अन्दर चल रहे विचार किस प्रकार के हैं और वह समाज, परिवार, रिश्ते-नाते व मित्रों से क्या कहना चाह रही हैं।
कहीं सुख का दृश्य है तो कहीं अन्तर्मन की पीड़ा। कहीं यादें हैं तो कहीं अन्दर ही अन्दर स्थान बनाते स्वप्न।
कवयित्री ने प्रारम्भ बहुत सुन्दर शब्दों से किया है, जिसमें ‘पथ प्रदर्शक’ कहते हुए सकल स्वरूप अविनाशी को श्रेय दिया है, जिन्होंने हमें लिखने, बोलने एवं सुनने की शक्ति प्रदान की है। बीच पड़ाव में सुख, दु:ख, प्रेम, करुणा, अपनत्व, नीरा-पीड़ा, कड़वा सत्य एवं उम्मीद को जेहन में रखते हुए गम्भीरता से कविताओं की रचना की है।
पुस्तक के अन्तिम पड़ाव में यादों के झरोखे, आँखों में खुशी एवं दर्द के आँसू हैं तो साथ ही जीवन की परिभाषा को भी कलम द्वारा कागज पर उकेरा है।

मनोज अरोड़ा
लेखक, सम्पादक एवं समीक्षक
+91-9928001528

Language: Hindi
Tag: लेख
601 Views
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