जिंदगी
कहने को तो बहुत छोटा शब्द है, लेकिन सागर के सम्मान विस्तृत और गहरा अर्थ अपने अंदर समेटे हुए रखती है। जिंदगी के मायने प्रत्येक व्यक्ति के लिए अलग तथा भिन्न भिन्न है। हर व्यक्ति इसे अलग अलग दृष्टिकोण से देखता है।
रिश्तो से भरा परिवार अपना भी पूरा है,
प्रेम व्यवहार के कारण, मन को लगता अधूरा है।
दिखावे के प्रेम से सींच रहा है, हर रिश्ता इस बगिया को,
बीजो के सामने ही काट रहा है, पेड़ से अपनी टहनियों को।।
जिन्होने हमें समझाया रिश्तोें से ही लगते हैं घर में मेले,
फिर क्यों रहते है वो त्यौहारों पर अपनों से कटकर अकेले।
गंर इस माहौल में ही, अगली पीढ़ी को वो पनपाएंगा,
तो ”परिवार का सुख” रुपी फल खुद कहां से पाऐगा।।
जो गंर नहीं समझेगा इस बात को,
तो काट रहा है स्वयं अपने हाथ को।
पीढ़ी दर पीढ़ी यही रीति चलेंगी,
“परिवार का सुख” मृगतृष्णा सी सबको खलेंगी।
यह भाव गंर पीढ़ी के मन में गर कर गया,
तो संयुक्त परिवार तो जैसे मर ही गया।
फिर परिवार के नाम पर सब अपना ही राग अलपाएंगे,
अपनी अपनी ढ़पली, अपना अपना राग ही बजाएंगे।।
आपका अपना
लक्की सिंह चौहान