दर्द की कश्ती
दर्द की कश्ती पर सवार होकर दरिया पार किये जाता हूँ,
“जख्मों का सैलाब” लेकर “मझधार” पार किये जाता हूँ I
जीवन तुझको अर्पित है तो डरना किस बात का,
“पतवार” तेरे हाथों में तो घबराना किस बात का ,
नैनो से नैना मिले तो शर्माना मुझे किस बात का ,
इश्क़ तुमसे किया है तो राज छुपाना किस बात का,
दर्द की कश्ती पर सवार होकर दरिया पार किये जाता हूँ,
तेरे चाँद से मुखड़े को देखने के लिए आगे बढ़े जाता हूँ I
कहाँ छिपे हो छलिया, सलोना रूप दिखला दो बस अपना ,
तरस रहीं है मोरी अखियां दरस दिखला दो ऐ मोरे सजना,
जी न पाउंगीं बिन तुम्हारे , प्यारा मंजर दिखला दो अपना,
हसरत पूरी हो जाएगी अगर दिखा दो अपना प्यारा सपना I
दर्द की कश्ती पर सवार होकर दरिया पार किये जाता हूँ,
तेरे चेहरे को एकनजर देखने के लिए आगे बढ़े जाता हूँ I
तेरे इश्क़ ने मुझे जमीं से आसमान दिखला दिया,
प्यार की माला ने खूबसूरत नज़ारा दिखला दिया,
” प्रेम ” का असली मतलब राज को समझा दिया ,
तेरे एक नज़र ने मुझे “ मालिक ” से मिला दिया I
दर्द की कश्ती पर सवार होकर दरिया पार किये जाता हूँ,
“जख्मों का सैलाब” लेकर “मझधार” पार किये जाता हूँ I
देशराज “राज” कानपुर