दर्द ए रकमिश darde Rakmish
कहूँ क्या दर्द ए रकमिश जमाने की नवाज़िश है ।
हमारे इश्क़ से नफ़रत हमारे ग़म पे बंदिश है ।
कोई पत्ता शज़र से टूटकर यूँ ही नही गिरता ,
समय का भी तक़ाज़ा है हवाओं की भी साज़िश है ।
नये आयाम गढ़ती हो गढ़े बेशक युवा पीढ़ी ,
मगर मां बाप की सेवा करे , इतनी गुज़ारिश है ।
गली, कूचे, मुहल्ले और शहरों तक बढ़ी नफ़रत,
ख़ुदा के नाम पर घर- घर महज़ झूठी परस्तिश है ।
भला कैसे कहूँ पैसे पे मरती है नही दुनिया ,
हुआ सच झूठ पैसों की जहां पहुँची सिफ़ारिश है ।
कोई बच्चा बिना चप्पल सड़क पर बोतलें बीने,
हमारे देश की उन्नति की वो असली नुमाइश है ।
मुझे इस तरहा तोड़ा है हमारे ग़म ने ए रकमिश ,
न जीने की तमन्ना है न मरने की ही ख़्वाहिश है ।
रकमिश सुल्तानपुरी