दर्द ए मुहब्बत
इस दर्दे-मुहब्बत का चारा ही नहीं कोई
समझाया बहुत हमने’ समझा ही नहीं कोई
कोई तो तसल्ली दे’ हालात के मारों को
कहते तो बहुत कुछ हैं’ सुनता ही नहीं कोई
उस मौत की बस्ती में’ कोई तो कशिश होगी
इक बार गया तो फिर’ लौटा ही नहीं कोई
मायूस मुसाफ़िर हैं’ भटकन की डगर के हम
मंज़िल पे जो ले जाये’ रस्ता ही नहीं कोई
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