दर्द ए दिल से दर्द निकलता है
दर्द ए दिल से दर्द निकलता है
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दर्द ए दिल से दर्द निकलता है,
जब मोम सा ह्रदय पिंघलता है।
पीड़ा का हल नजर नहीं आता,
गम अंदर ही अंदर उबलता है।
सफर में कोई हमसफर नहीं है,
पहर दर पहर तम निखरता है।
लपटें अग्नि की यूँ न धधकती,
कहीं न कहीं धुआँ सुलगता है।
मन प्रेम की लहरों से टकराए,
हिया पिया मे रहे उलझता है।
बहते जल मे हरकोई बह जाए,
ठहरा पानी भी तो उछलता है।
उलझन में है उलझा मनसीरत,
हाल ए ख्याल ना सुलझता है।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेडी राओ वाली (कैंथल)