हाय!
आशिक़ों के जो निकले दम होंगे
हुस्न के यूँ भी क्या सितम होंगे
यूँ बढ़ाओगे बात जीतनी ही
बात में उतने पेचो ख़म होंगे
हो चुके बिछते बिछते संगे राह
चश्म ये अब न यार नम होंगे
ख़्वाहिशों कर दिया है तुमको तर्क़
दर्द इस तर्ह कुछ तो कम होंगे
ख़त्म होंगे न अश्क ग़ाफ़िल गर
हाले ख़स्तः भी ख़ाक ग़म होंगे
-‘ग़ाफ़िल’