दर्दों कि दास्तान लिए फिर रहे यहां
दर्दों कि दास्तान लिए फिर रहे यहां
हाथों में इक मकान लिए फिर रहे यहां
वो कुछ ख़याल-ए-ख़ास जो मरक़ज में आए थे
यादों के दरमियान लिए फिर रहे यहां
ख़लवत में सर झुकाने का होगा न फ़ायदा
दर-दर जो साएबान लिए फिर रहे यहां
राहों में मिल गए थे वो अहल-ए-अदम हमें,
चेहरे पे मुस्कयान लिए फिर रहे यहां
अब इन त’अल्लुक़ात में वो मय नहीं बची
ये कैसा खानदान लिए फिर रहे यहां
लाचार जिंदगी मे मिरी कुछ नही बचा
हाथों में अपनी जान लिए फिर रहे यहां
सब कुछ तो लुट गया मिरा अब कुछ नही रहा
किस्मत लहू-लुहान लिए फिर रहे यहां