दर्दे-ए-मुहब्बत
बता मुहब्बत की कौन सी वो हसीं तुझे शाम दूँ।
इक़बाल की नज़्म या मीर की ग़ज़ल तुझे नाम दूँ।।
मेरे हाल-ए-दिल से है जो इस तरह बेख़बर तू।
अब अपनी दर्दे-ए-मुहब्बत का किसे पैगाम दूँ।।
मुस्कुराहटें जो तेरी लबों पे इतराती फिरे हरदम।
बता नज़राना कौन सा अपना तुझे मैं ईनाम दूँ।।
हँसता है अब ज़माना देख मेरे हाल-ए-वहस्त को।
बता मेरे इस बिगड़े हालात का किसे इलज़ाम दूँ।।
चुप है तेरी बोलती ख़ामोशी क्यों इस क़दर अब।
तेरे मुर्दा ईश्क़ को क़ब्र में मिटटी कैसे सरे आम दूँ।।
मो• एहतेशाम अहमद,
अण्डाल, पश्चिम बंगाल