दरिया सी फितरत
मेरी दरिया सी फितरत है, रवानी ले के चलता हूँ I
समंदर से फ़क़त अपने, मैं मिलने को मचलता हूँ I I
कोई कब रोक पाया है यहाँ पर राह को मेरी..
इधर जो बंद मिलती है, उधर से मैं निकलता हूँ I I I
नहीं बुझने दिया हमने कभी उम्मीद का दीपक I
बढाया जब कदम आगे, नहीं रखा कोई भी शक़ I I
मेरे विश्वास में बसता खुदा, या राम, जीसस, रब..
दिए कुछ बोझ उसको भी, अकेला मैं तो जाता थक I I I
हजारों बार गिर कर भी संभालना अब तो आदत है I
जमैयत(संतुलन) में बने रहना, मुझे लगती इबादत है I I
बुलंदी देख कर अपनी न कोई भी गुरूर आये..
ये सब उसका करम ही है, उसी की तो इनायत है I I I