दरिया के साथ कहीं समंदर नही जाता
दरिया के साथ कहीं समंदर नही जाता
आंखों के साथ चलकर मंजर नही जाता
हर इंसान में होता है मगर कम या ज्यादा
तमाम कोशिशों के बाद भी बंदर नही जाता
ख्वाबों ने बना दिया है दिवालिया मुझको
हर इंसान में रहता है सिकन्दर नही जाता
तमाम लोग बोलते हैं झूठ किस मक्कारी से
इसका सच मेरे हलक के अंदर नही जाता
आखिरत का खौफ़ नही है तनहा मुझको
रुह जाती है आसमान तक पंजर नही जाता