दरिया-ए-मुहब्बत में अब मुझको उतरने दो।
गज़ल
221……1222……221…..1222
दरिया-ए-मुहब्बत में अब मुझको उतरने दो।
गर हुस्न सँवारा है तो इश्क सँवरने दो।
ये जुल्फ़ों के बादल जो रुख पे हैं तेरे छाए,
बेखौफ़ मेरी जानम मुझ पर ही बरसने दो।
हम याद रखें तुमको तुम याद रखो मुझको,
ये याद सहारा है इसको न विसरने दो।
तू चाँद से बेहतर है बेदाग तेरा चहरा/चेहरा
उस चाँद से बढ़कर भी ये चाँद निखरने दो।
खुशियाँ जो मिली रब से हर एक के खातिर हैं,
महलों से उन्हें चलकर हर घर में ठहरने दो।
मयकश से भी ज्यादा मय अब प्यार की पीता हूँ,
बहके न कदम फिर भी इनको न बहकने दो।
ये प्रेम से महकेगी दुनियाँ जो बने प्रेमी,
गर प्रेम कोई तुमसे करता है तो करने दो।
………✍️ प्रेमी