Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
6 May 2022 · 4 min read

*दरवाजा (कहानी )*

दरवाजा (कहानी )
————————————
सड़क पर मोबाइल से बातें करते करते मैं चलता चला जा रहा था । अपने ही ख्यालों में खोया हुआ था। मुझे यह भी पता नहीं चला कि सड़क पर कब एक मोड़ ऐसा आ गया, जिसमें एक सुंदर सा दरवाजा जो कम से कम 50 फीट ऊँचा लकड़ी का बना हुआ होगा ,खूबसूरत शिल्प का नमूना और मैं जैसे ही उस दरवाजे के पास पहुँचा, दरवाजा अपने आप खुल गया और मैं उस दरवाजे से भीतर चला गया।
मेरे भीतर जाते ही दरवाजा अपने आप बंद हो गया । अंदर का दृश्य बहुत ही मनोहारी था । बिल्कुल कोई परी लोक की कथाओं जैसा । एक बड़ी सी नहर थी। जिस में राजा साहब नाव पर सवार होने जा रहे थे। मुझे देखते ही कहने लगे “आप भी आइए ! ”
मैं हिचकिचाया। मैंने कहा” मैं क्यों ? ”
वह बोले “आप हमारे अतिथि हैं ।आप का सर्वप्रथम अतिथि के नाते आगमन स्वागत के योग्य है ।”
उनका आग्रह स्वीकार करके मैं उनके पास नाव में जाकर बैठ गया । धीरे-धीरे नाव चलने लगी । राजा साहब नाव में ही चारों तरफ घूम रहे थे । नाव के थोड़ा आगे बढ़ते ही कुछ लोग ढपली बजा- बजाकर कुछ गा रहे थे । मेरी समझ में उनके शब्द तो नहीं आए ,लेकिन हाँ उनके गायन में उल्लास, उमंग और उत्साह भरपूर था। राजा साहब ने 500 के नोटों की गड्डियां उन सब गायकों को प्रदान कीं। मेरी आँखें फटी की फटी रह गई। अरे वाह ! इतना पैसा !
फिर थोड़ा आगे जब बढ़े , तो एक अखाड़ा चल रहा था। जिसमें दंगल था। पहलवान कुश्ती लड़ रहे थे और तरह-तरह के दाँवपेच आजमा रहे थे । मैंने महसूस किया कि राजा साहब इस दाँवपेच से पूरी तरह परिचित हैं। नाव थोड़ी देर कुश्ती देखने के लिए रुकी रही । राजा साहब ने यहाँ पर भी भरपूर धनराशि पहलवानों को प्रदान की। थोड़ा दूर आगे बढ़ने पर बहुत सुंदर गिफ्ट सेंटर जैसी एक बड़ी दुकान थी ,उसमें अद्भुत वस्तुएँ प्रदर्शनी के लिए लगी हुई थीं। लोग खरीदारी कर रहे थे और कुछ इस प्रकार से उस दुकान को सजाया गया था कि लोग खरीदारी भी करते रहे और राजा साहब उस दृश्य का आनंद अपनी नाव पर बैठे-बैठे लेते रहें। राजा साहब ने नाव पर बैठे-बैठे ही खरीदारी के लिए कुछ वस्तुएँ निश्चित कर दीं। उनके साथ चल रहा उनका स्टाफ उन वस्तुओं को धनराशि देकर एक ट्रक में भरता जा रहा था ।
थोड़ा आगे चलने पर मैंने देखा कि दस- बारह फीट ऊँचा एक पत्थर जमीन पर ऊंचाई के साथ स्थापित किया गया था। पत्थर चिकना था और उसमें फिसलन थी। पत्थर के ऊपरी हिस्से पर पचास हजार रुपये की नोटों की एक थैली लटकी हुई थी। एक-एक करके लोग उस फिसलन पर चढ़कर रुपयों की थैली प्राप्त करने का प्रयत्न कर रहे थे मगर फिसलन पर फिसलते जा रहे थे और गिरते जा रहे थे । इस खेल में जनता को भी आनंद आ रहा था तथा राजा साहब भी बहुत प्रसन्न हो रहे थे। मुझे भी यह खेल बहुत अच्छा लगा। जनता के बीच में से सब लोग इस खेल में भाग नहीं ले पा रहे थे क्योंकि यह बहुत कठिन था। फिसलन पर सीधे चढ़ना बहुत कठिन इसलिए भी हो गया था क्योंकि कहीं कोई सहारा नहीं था। लेकिन फिर भी कुछ लोग पाँच – छह फिट तक चढ़ गए, जिस पर मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ।
अंत में एक कवि सम्मेलन चल रहा था। यहाँ पहुंचकर राजा साहब ने नाव रोक दी ।कवियों की बड़ी सुंदर कविताएँ मंच पर पढ़ी जा रही थीं। राजा साहब के पधारने के पश्चात एक कवि को केवल दो मिनट का समय दिया जाता था और उसी में उसे अपना दोहा , मुक्तक अथवा एक कोई शेर प्रस्तुत करना होता था । यहाँ पर अद्भुत आनंद आया । संभवतः यह राजा साहब की रियासत के कवि और शायर थे ,जिनको सम्मान दिया जाता था । राजा साहब ने सब के गले में सोने के हार पहनाए । मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ । मैंने राजा साहब से पूछा “क्या यह सोने के हैं या पालिश के ?”
राजा साहब मुस्कुराते रहे । बोले “यह शुद्ध सोने के बने हुए हैं ।हमारी रियासत में सोना बिखरा हुआ है । लोग धनवान हैं । सब सुखी हैं ।सब निरोगी हैं। किसी को कोई कष्ट नहीं है । कहीं चोरी और डकैती नहीं होती। आप भी हमारी रियासत में आकर बस जाइए ।आपका स्वागत है।”
मैंने कहा “नहीं ! मुझे तो अपने घर जाना है ।मेरा घर कहाँ है ?”
राजा साहब बोले “कोई बात नहीं ।आप नाव से उतर जाइए ।उतरते ही आपका घर आ जाएगा ।”
फिर मैं नाव से उतरा और मेरे सामने फिर वही पुराना दरवाजा था, जिसमें से मैंने अंदर प्रवेश लिया था । मैं उस दरवाजे से बाहर चला गया । दरवाजा अपने आप बंद हो गया। मैंने देखा कि मेरा घर सामने ही नजर आ रहा था ।
—————————————-
लेखक : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 9997 615451

Language: Hindi
1156 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Ravi Prakash
View all
You may also like:
ईश्वर के सम्मुख अनुरोध भी जरूरी है
ईश्वर के सम्मुख अनुरोध भी जरूरी है
Ajad Mandori
यूं ही कोई शायरी में
यूं ही कोई शायरी में
शिव प्रताप लोधी
धुन
धुन
Sangeeta Beniwal
होली
होली
डॉ नवीन जोशी 'नवल'
परोपकार
परोपकार
ओंकार मिश्र
कैद है तिरी सूरत आँखों की सियाह-पुतली में,
कैद है तिरी सूरत आँखों की सियाह-पुतली में,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
मन के वेग को यहां कोई बांध सका है, क्या समय से।
मन के वेग को यहां कोई बांध सका है, क्या समय से।
Annu Gurjar
पितरों का लें आशीष...!
पितरों का लें आशीष...!
मनोज कर्ण
सितमज़रीफ़ी
सितमज़रीफ़ी
Atul "Krishn"
जीवन में संघर्ष सक्त है।
जीवन में संघर्ष सक्त है।
Omee Bhargava
ज़िंदगानी
ज़िंदगानी
Shyam Sundar Subramanian
दोहा बिषय- दिशा
दोहा बिषय- दिशा
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
मुनाफे में भी घाटा क्यों करें हम।
मुनाफे में भी घाटा क्यों करें हम।
सत्य कुमार प्रेमी
पोषित करते अर्थ से,
पोषित करते अर्थ से,
sushil sarna
3747.💐 *पूर्णिका* 💐
3747.💐 *पूर्णिका* 💐
Dr.Khedu Bharti
जब भी सोचता हूं, कि मै ने‌ उसे समझ लिया है तब तब वह मुझे एहस
जब भी सोचता हूं, कि मै ने‌ उसे समझ लिया है तब तब वह मुझे एहस
पूर्वार्थ
"नजर से नजर और मेरे हाथ में तेरा हाथ हो ,
Neeraj kumar Soni
गजल सगीर
गजल सगीर
डॉ सगीर अहमद सिद्दीकी Dr SAGHEER AHMAD
मतदान जरूरी है - हरवंश हृदय
मतदान जरूरी है - हरवंश हृदय
हरवंश हृदय
बच्चे
बच्चे
Dr. Pradeep Kumar Sharma
राष्ट्र हित में मतदान
राष्ट्र हित में मतदान
लक्ष्मी वर्मा प्रतीक्षा
ना जाने क्यों जो आज तुम मेरे होने से इतना चिढ़ती हो,
ना जाने क्यों जो आज तुम मेरे होने से इतना चिढ़ती हो,
Dr. Man Mohan Krishna
अगर प्रेम है
अगर प्रेम है
हिमांशु Kulshrestha
अनुभव 💐🙏🙏
अनुभव 💐🙏🙏
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
दर्द ना अश्कों का है ना ही किसी घाव का है.!
दर्द ना अश्कों का है ना ही किसी घाव का है.!
शेखर सिंह
*किसकी है यह भूमि सब ,किसकी कोठी कार (कुंडलिया)*
*किसकी है यह भूमि सब ,किसकी कोठी कार (कुंडलिया)*
Ravi Prakash
ओ अच्छा मुस्कराती है वो फिर से रोने के बाद /लवकुश यादव
ओ अच्छा मुस्कराती है वो फिर से रोने के बाद /लवकुश यादव "अज़ल"
लवकुश यादव "अज़ल"
#चिंतनीय
#चिंतनीय
*प्रणय*
"समरसता"
Dr. Kishan tandon kranti
मुझे जीना सिखा कर ये जिंदगी
मुझे जीना सिखा कर ये जिंदगी
कृष्णकांत गुर्जर
Loading...