दरवाज़े सबके लिए खोलता है दिल्ली शहर
दरवाज़े सबके लिए खोलता है दिल्ली शहर
इंसान को इंसान से जोड़ता है दिल्ली शहर
हाय हामिद का चिमटा कभी आतिश-ए-ईश्क़ में
आज भी मुंशी ग़ालिब को खोजता है दिल्ली शहर
जितनी गलियाँ मकां शुमार उतनी बोलियाँ जबां
ज़बान प्यार की सबसे बोलता है दिल्ली शहर
इमारतें मुग़लिया पांडवों के हस्तिनापुर से
लोगों पे छाप अपनी छोड़ता है दिल्ली शहर
बर्फ़ीली सर्दी तेज़ बारिशें तपती गरमी कभी
हर मौसम का आँचल ओढ़ता है दिल्ली शहर
और क्या चल रहा है पूछें जो यूपी वाले
हम बोले चलता नहीं दौड़ता है दिल्ली शहर
चाँदनी- चौंक ही नहीं ‘सरु’ने हर चप्पा देखा
लगा क्या बिजलियों सा कोंधता है दिल्ली शहर