दरख़्त पलाश का
सुनो……
याद है न तुम्हें
वो दरख़्त पलाश का
वो हमारी पहली
मुलाकात का गवाह…..
जब मैं… आप
हम
हो गए थे
हमारा प्यार
पलाश के फूलों
की तरह खिलने
लगा था……
तुम्हारी वो प्यार भरी
मीठी-मीठी बातें
कब मेरी आत्मा में
समा गई
कब .मैं…….मैं. न रही
मुझे पता ही नहीं चला
तुम्हारे प्यार का रंग
ऐसा चढ़ा मुझ पर
जैसे फाग में चढ़. जाता है
पलाश के फूलों का रंग
तुम्हरा प्यार पा कर
खिल उठी थी मैं
पलाश की तरह
बिन तेरे प्यार के
हूँ मैं अब लाश की तरह
सुनो……
चलो एक बार फिर
उसी .पलाश के दरख़्त
के तले
फिर से हम
एक नई शुरुआत करते हैं
जीवन की बगिया में
पलाश के फूल खिलाते हैं
*शकुंतला
अयोध्या (फैज़ाबाद)*