दरकरार
नोटों की **दरकरार सबको हैं,
अभी *धर्म और **सरकार को
तुमसे भी ज्यादा ***जरूरत हैं,
तुम पर जो ***प्रतिबंध लगे हैं ,
ये उनकी *जरूरत *कतई नहीं,
ये तुम्हारी अपनी निज जरूरत हैं.
तुम्हारे एक *वोट एक *विचार से,
कहीं अधिक सामान्य से ज्यादा है.
नोटों की **दरकरार **सबको है.
क्या तुम नहीं चाहते हमारी एक फूटे,
पडोसी मानचित्र से सदा के लिए हटे,
दो भरपूर समर्थन ये काम मिनटों में करे,
स्मार्ट सिटी बनाने है बुलैट ट्रेन लानी है,
किसी तरह पूँजीवादियों का समर्थन लें
बार कहते है यू कैन डू इट, हर बार पीछे हटे,
काम किये हमने ऐसे, अमेरिका भी विकसित कहे,
भले नहीं हमारे पास खुद का,नाम बदल अपना करे,
हो गर साथ आज ही धर्मनिरपेक्ष नहीं हिंदुस्तान लिखे.
#व्यंग्य वैद्य महेन्द्र सिंह हंस