— दरकते रिश्ते —
बड़ी डोर होती है नाजुक
न जाने कब टूट जाएँ
यह रिश्ते हैं बहुत कोमल
जरा सी बात पर बिगड़ जाएँ !!
न हो मन की तो थम जाएँ
आगे चलने से पहले रूक जाएँ
आहाट की जैसे रहती इन्तेजार
यह रिश्ते दरकते ही टूट जाएँ !!
एहम सब का बड़ा ऊँचा है
बात बात पर बिगड़ जाएँ
जरा सी चूक हो आवभगत में
तो पल में तेवर बस चढ़ जाएँ !!
न रोक सका कोई इस एहम को
यह तो नीचा न कभी हो पाए
न जाने कौन सी बात बुरी लगे
और बिना कहे बात बंद हो जाए !!
अजीत कुमार तलवार
मेरठ