दया दृष्टि
“दया-दृष्टि”
तुम जो कहोगे
मैं वो करूँगी
तुम जैसा चाहोगे
मैं वो बनूँगी
छोड़ दूँगी
तुम्हारे लिए सब कुछ
हर बुरा स्वभाव
अभिमान, घृणा, ईर्ष्या और
त्याग दूँगी
कुटिल मन की भाषा
गंगा के
स्वच्छ जल-सी
स्वयं को
निर्मल बना लूँगी
धीरे-धीरे
इस जग में
सुनो!मेरा प्रेमी
इतना दयालु और कौन है?
बस दे दो स्थान
तुम्हारे चरणों में
मुझ पर
सदा दया-दृष्टि रखो~तुलसी पिल्लई