दफ्तर में इंसान
बड़ा सुकून है दफ्तर में,
बचे हुए है गृह चक्कर से,
करते हुए काम यहाँ,
हवा ले रहे मन भर के,
मौज ले रहे उन सब के,
लगा रहे जो चक्कर रे,
इंतजार करो बैठो बाहर,
आ रहे है साहब सरकार,
कर रहे है ड्यूटी पूरी,
व्यस्त बहुत है समझो न यार,
भूखे है होता नहीं काम,
पंडित भोग लगाए भगवान,
कैसे भूखे करेंगे काम,
थोड़ा जल पान तुम भी कर लो,
दिन भर से कर रहे हो दौड़ भाग,
साहब को भी पूछ लेना,
हो जाएगा जल्दी काम,
दिन होता है छोटा-सा,
अगले दिन में फिर आ जाओ ना,
भईया आए हो सरकारी विभाग,
बड़े मज़े है यहाँ पर यार,
लगे हुए है सुविधा आपार,
दफ्तर बन गया पूर्ण व्यापार,
एक ही नारा भ्रष्टाचार,
लगा रहा जो चक्कर यार,
कहाँ से आया ये सच्चा इंसान ।
रचनाकार-
✍🏼✍🏼
बुद्ध प्रकाश,
मौदहा हमीरपुर।