प्रवृत्ति एवं परिवेश!
वो कहते हैं ये बड़े दयालु हैं,
कुछ ये भी कहते हैं वे बड़े कृपालु हैं,
कुछ उन्हें ममता की मुरत मानते हैं,
वो बड़े ही ममतालु हैं,
ये लोग यह बताते नहीं अघाते,
वो तो बहुत श्रद्धालु हैं,
पर तब तक,
जब तक,
वो उनकी कृपा हैं पाते,
अहसानों से दबे हैं जाते,
श्रद्धा भाव से गढ़े हैं जाते,
बड़ी बड़ी डींगे वह हांक जाते,
ना सकुचाते न शर्माते,
सुंदर भाव से वे फरमाते,
वो तो बड़े दयालु हैं!
अक्सर हम ये देख और सुन रहे होते हैं,
यही लोग उन पर तोहमत मढ रहे होते हैं,
वही उन्हें अब फुटी आंख नहीं सुहाते,
आते जाते हैं इतराते,
खाते पीते हैं बतियाते,
ना वो कभी दयालु थे,
ना वो कोई कृपालु हैं,
वो तो सिर्फ ईर्ष्यालु हैं,
वो तो सिर्फ झगड़ालु हैं!
यह टिका टिप्पणियां है चलती,
देश दुनिया दिख रही है खेमों में बंटती,
सहिष्णुता आ रही है घटती,
वैमनस्यता जा रही है बढ़ती,
और इसकी सारी मार आम लोगों पर है पड़ती!
ये सारी मार हम जनता पर ही है पड़ती !!