“दम लगा के हई शा”
“दम लगा के हई शा”
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दम लगा के हईशा
हिम्मत न हार
थक मत
अब चल उठ जा
चल उठ
मत घुट
घुट घुट कर
मर जाएगा
हाथ कुछ नहीं आएगा
दो नहीं कई पाटों में पिस जायेग
घुड़सवार ही गिरते हैं
गिर गिर कर फिर उठते हैं
फिर जा घोड़े पर चड़ते हैं
छूट गया सफ़र बाकी
चल उसको पूरा करते हैं
मंज़िल को बढ़ चलते हैं
हैं अवरोध कई
नवबोध कई
राह कहाँ आसान नई
काँटे कहीं ,शिला कहीं
पर्वत खड़ा है सीना ताने
कही तपती रेत का सागर है
चल बैठने से कुछ न होगा
सफ़र तो चलने से ही तय होगा
दम लगा के हई शा
थक मत
अब उठ जा
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राजेश”ललित”शर्मा