दबंग आशिक (हास्य रचना)
मेरी कलम से….✍
आशिक भी बड़े गज़ब के
होते हैं।
तर्क भी बड़े अजब से देते
हैं।।
कभी तो वो खुद को….,
प्यार में पागल बताते हैं।
कभी वो माशूक की आंखों
के,
कजरे की धार से ही घायल
हो जाते हैं।।
एक आशिक ने महबूबा को
कुछ इस तरह,
मोहब्बत का इज़हार कर
डाला।
मोहब्बत की जगह दिल्लगी
में,
महबूबा के दिल मे खौफ
भर डाला।।
तू मेरी जान मैं तेरी जान,
हम दोनों एकजान और
दुनिया हैरान।
दुनिया हो हैरान सो तो ठीक
है,
लेकिन तेरा बाप क्यूँ परेशान।।
मुझे क्या हो कोई हैरान चाहे
परेशान,
अगर तेरा बाप हमारे बीच
आया,
तो फिर समझो ससुर जी भी
कुर्बान।।
देख तू मुझे न मिली तो मैं,
काम ऐसा कर जाऊँगा।
तेरी डोली वाली कार के नीचे,
आकर मैं मर जाऊँगा।
फिर भूत बनकर मैं तेरे….,
ससुराल में उधम मचाऊंगा।।
चले दो दिलों के बीच में,
समझौता कराने कवि “गुप्ता”
भलीराय।
प्रेमी-प्रेमिका को पास बिठा,
कहे बात ये समझाये।।
चल तेरी जुदाई का गम भी,
ये हंसते हंसते सह लेगा।
खुद बहनोई न बन सका
तो क्या,
तेरे शौहर को बहनोई कह
लेगा।।
अपने साथ हुई बेवफाई
की,
मैंने भी खूब भड़ास निकाली।
प्रेमी को हिम्मत बंधाकर,
अपनी राय दे डाली।।
ऐसे आशिक मत बनो जो,
इश्क में कराहते रहते हैं।
वो ज़िंदादिल आशिक बनो,
जो हर गली में मुमताज़
बनाते रहते हैं।।
संजय गुप्ता।